अ+ अ-
|
दिन भर की अलसाई बाँहों का मौन,
बाँहों में भर-भर कर तोड़ेगा कौन,
बेला जब भली लगेगी।
आज चली पुरवा, कल डूबेंगे ताल,
द्वारे पर सहजन की फूलेगी डाल,
ऊँची हर डाल को झुकाएगा कौन
चौथे दिन फली लगेगी।
दिन-दिन भर अनदेखा, अनबोली रात
आँखों की सूने से बरजोरी बात,
साँझ ढले साँकल खनकाएगा कौन,
कितनी बेकली लगेगी।
|
|